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Friday, August 12, 2016

अकाल के माथे पर सुकल का टीका - मिनाक्षी अरोड़ा

ख् उत्तर प्रदेश के बाँदा के नरैनी तहसील के सुलखानपुरवा से खबर आई कि लोग अकाल की वजह से ‘घास की रोटी’ खा रहे हैं। यह खबर कई बड़ी पत्र-पत्रिकाओं में छपी। प्रकाशित खबरों का संज्ञान लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कोर्ट कमिश्नर के तौर पर हर्ष मंदर और सज्जाद हसन को स्थिति का जायजा लेने के लिये भेजा। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद स्थानीय प्रशासन सक्रिय हुआ और उसने इसको झूठ बताया। इस पर जूतम-पैजार शुरू हो गई। स्वयंसेवी संगठनों ने अपनी भिखमंगई के लिए प्लांटेड खबरें कराईं, ऐसा आरोप भी लगा। पर इस विवाद में कुछ खबरें छूट गईं। ‘ब्रेक’ की जल्दबाजी में सूखे से लड़ने वालों का हौसला और धीरज खबर नहीं बन पाया। ‘घास की रोटी’ की खबर वाले इलाके से महज 100 किमी के घेरे में कई सुखद खबरें हैं, लोगों ने तालाब बनाए हैं और अपनी खेती कर रहे हैं। सच्चाई यही है कि जिन्होंने पानी बोया है, वे फसल काट रहे हैं।, 
मध्य भारत का एक ऐतिहासिक इलाका है बुन्देलखण्ड। 2013 के साल को छोघ् दें तो बुन्देलखण्ड में पिछला एक दशक लगभग सूखा और अकालग्रस्त ही रहा है। सूखे की कुदरती मार एक बार फिर गम्भीर हो चुकी है। ढइझ‘इस वर्ष के जैसा सूखा पिछले पचास साल में नहीं देखा है’ढध्इझ बुजुर्ग बताते हैं। अति सूखाग्रस्त इलाकों में महोबा, हमीरपुर, चित्रकूट, बांदा, झाँसी, ललितपुर और टीकमगढ़ है। पहले रबी की फसल कमजोर हुई और अब खरीफ की फसल भी लगभग बर्बाद हो चली है। नतीजा भुखमरी के हालात हैं। लाखों की संख्या में लोग पलायन कर रहे हैं। पानी के इंतजार में अंखियां बरस रही हैं। माँ की ममता बाजार में है, बेबसी में बच्चे बेचने की घटनाएँ भी सुनने में आ रही हैं। पानी और चारे की कमी के कारण गायों को लोग खूँटे से छोड़ रहे हैं। लोग गायों के माथे पर रक्तवर्ण के कुमकुम का टीका कर गाँव से दूर छोड़ आते हैं, इसे कहते हैं अन्ना प्रथा। अन्ना गायें किसानों की बेबसी की टीका हैं। चारे-पानी के संकट से तो पशुओं के सामने मौत खड़ी हो गई है। अन्ना गायें जैसे पालतू और सियार जैसे घुमन्तू-जंगली जानवर प्यास के मारे मरे पाए जा रहे हैं। 
वर्षा ऋतु बीत चुकी है। बुन्देलखण्ड तो क्या देश के हर कोने से बादल विदा हो चुके हैं। ठण्ड उतार पर है। गर्मियों की दस्तक आ चुकी है। आने वाली गर्मी में पानी की किल्लत की आशंका से लोग अभी से हलकान हैं। लोग चिन्तित हैं कि जब सर्दी में ही पानी की दिक्कत हो रही है तो गर्मी में हलक कैसे गीला होगा। बारिश की कोई उम्मीद नहीं रह गई है। पर सूखे से बदहाल और बेबस किसानों को अभी भी बांदा के लामा गाँव में विराजित ढइझश्बारिश वाली माता बिछुल देवीश्ढध्इझ से आस बंधी हुई है। किसानों ने श्रद्धा और जरूरत के चलते हजारों की संख्या में इकट्ठा होकर श्बारिश माताश् को खुश करने को खूब पूजा-अर्चना की। पर माता को खुश नहीं कर पाए और न ही बारिश हुई। माता के आँगन में एक सुंदर तालाब है, जो सूखे में भी पानी सहेज कर रखे हुए है। जो सिखाता है कि ढइझश्बारिश वाली माताश्ढध्इझ बिछुल देवी को नारियल, झंडी-डंडी से आगे बढ़कर नीरांजलि चाहिए। 
वैसे तो बुन्देलखण्ड में लगभग दस हजार गाँव हैं। पहाघ्ी, दुर्लभ, रिहायशी इलाकों को छोघ् भी दें तो अंदाजन पचास हजार वर्ग किमी जमीन बरसे पानी को सहेजने के काम आ सकती है। इतनी बड़ी जमीन पर हुई वर्षा को यदि सहेज लिया जाए तो असीमित जल-संरक्षण का पुण्य कमाया जा सकता है और सूखे में भी सुखी रहा जा सकता है।
हालाँकि बुन्देलखण्ड में पिछले दो-तीन दशकों से सतही पानी और भूजल में भारी गिरावट देखी जा रही है। भूजल स्तर में लगातार गिरावट से हैण्डपम्प, ट्यूबवेल और नलकूप साथ छोघ्ते जा रहे हैं। बघ्े-बघ्े तालाब भी सूख चले हैं। ऐसे में कोई ऐसा तालाब दिख जाए, जिसमें 20 फीट पानी भरा हो तो रेगिस्तान में नखलिस्तान जैसा ही नघ्र आता है।
सूखे में भी सुखी होने का एक प्रयास उत्तर प्रदेश में स्थित जिला हमीरपुर, तहसील मौदहा, ग्राम जिगनौघ, निवासी आशुतोष तिवारी के खेत में देखने को मिलता है। अनमोल बूँदों को सहेजकर रखने वाले आशुतोष के पास इस अकाल में भी पानी का बंदोबस्त है।  आशुतोष तिवारी बताते हैं कि ढइझष्सूखे की परेशानी से निजात पाने को एक बोरवेल खुदवाया था, पर उसमें जरूरत का पानी नहीं मिला। अखबारों में ‘महोबा-अपना तालाब अभियान की चर्चा सुनता रहता था।’ बड़ी इच्छा होती थी कि एक तालाब बनाऊँ। सरकार को एक परियोजना के लिये मिट्टी की जरूरत थी, मैंने तुरन्त हामी भरी। और 35 फिट गहरा एक तालाब बना डाला। 2013 में तालाब निर्माण हुआ ही था कि बारिश आ गई। और तालाब लबालब भर गया। तब से इस तालाब में लगातार पानी आता-जाता रहा है। पर कभी सूखा नहीं तालाब। उस समय हमारे खेत के आस-पास जितने भी तालाब लोगों ने खुदवाए थे। उन सब में अभी भी पानी है। इन्हीं तालाबों की वजह से आज हमारे खेत में फसलें दिखाई पघ् रही हैं। वरना पूरे क्षेत्र की तरह हमारा भी खेत पानी की किल्लत से बोया नहीं जाता और भूमि बंजर पघ्ी रहती।ष् ढध्इझ
आशुतोष ने तालाब के काफी पानी को अभी भी बचा रखा है। सिंचाई में इस्तेमाल नहीं करते। पूछने पर बताते हैं कि काफी पानी वह बचाकर रखेंगे ताकि घुमन्तू पशुओं, जंगली और ग्रामीण जानवरों को पीने का पानी मिल सके। अब आशुतोष महज फसलों पर निर्भर न रहकर बागवानी भी कर रहे हैं। जिनमें आम, अमरूद, सीताफल, कटहल, नींबू, मौसमी, करौंदा आदि के करीब 600 फलदार और 500 सागौन के ईमारती लकड़ी वाले पेड़ लगाए हैं।  
आशुतोष की तरह ही महोबा के बरबई गाँव के शिवराज सिंह ने भी अपना तालाब बनाया। घर में बहन की शादी थी, थोड़ा बहुत रूपया- पैसा, जेवर जैसे कैसे जुटा रखा था। और जमीन बेचकर शादी को सोचा। तभी अपना तालाब अभियान की प्रेरणा से तालाब के फायदे के बारे में जाना। बस फिर क्या था घर में सलाह मशविरा किया और बहन की शादी रोककर बनाया तालाब। 2013 में वर्षा की बूँदों को समेटने का जतन तालाब बनाकर पूरा हुआ। उस साल की अच्छी बारिश ने तालाब को पूरी तरह भर दिया, इससे उनके दशकों से सूखे खेतों को पानी मिला, साथ ही मिला निराश परिवार को खेती का नया नजरिया।  

किसान शिवराज सिंह व उनके छोटे भाई और माँ के हिस्से में कुल 14 एकड़ जमीन है। पर पिछले एक-डेढ़ दशक से इतनी भी फसल नहीं मिलती थी कि वह ठीक तरह से अपने परिवार का भरण-पोषण कर पाते। दो-तीन कुन्तल प्रति एकड़ की पैदावार अमूमन मिल पाती। जिससे लागत निकाल पाना भी मुश्किल होता। कम बारिश के सालों में कई सालों तक बीज भी वापस नहीं हुआ। यही वजह थी कि साल 2012 में अपनी 14 एकड़ जमीन को एक साल के लिये ठेके पर उठा दिया। इससे 42000 रु. सालाना की रकम मिली। इस रकम से परचून की दुकान खोली। दुकान से परिवार की परवरिश का प्रयास किया। पर साल पूरा होने के पहले ही दुकान की मूल पूँजी भी उदर-पोषण में चुक गयी। आय का कोई अन्य साधन न देखकर जमीन बेचकर ही बहन के विवाह का मन बनाया। माँ के हिस्से की डेढ़ एकड़ जमीन का सौदा करना तय किया। अप्रैल 2013 में 3 लाख 15 हजार में जमीन बेची। 
उसी दौरान सिंचाई जलसंकट के टिकाऊ समाधान के लिये काम कर रहे ढइझ‘अपना तालाब अभियान’ढध्इझ की बैठक उनके गाँव में हुई। शिवराज सिंह ने शादी रोककर पहले तालाब बनाने का तय किया। जून 2013 में ढइझ‘एक लाख तिरासी हजार रुपये’ढध्इझ की लागत से पौन एकड़ का साघ्े तीन मीटर गहरा तालाब बना डाला। अपने परिवार के साथ वर्षा के दिनों में भी तालाब के भीटों पर सुबह से शाम तक बने रहने की आदत सी डाल ली, तभी तो तालाब में पानी की मात्रा का अंदाजा लगाकर कम पानी वाले बीजों का चयन कर बोवाई की। उनके असिंचित एकफसली खेत दोफसली होने की ओर अग्रसर हैं। इस सूखे के साल में भी शिवराज पहली फसल ले चुके हैं, और दूसरी की तैयारी में हैं।
शिवराज सिंह की बहन की शादी हो गई है। बेटी के हाथ पीले करने की तैयारी में है। शिवराज सिंह बताते हैं कि पानी के साथ भाई भी लौट आया है,  भाई संकट के दौर में गाँव से पलायन कर गया था, गाँव जल्दी आता न था। पर अब लौटकर खेती में हाथ बँटाता है। इस साल शिवराजसिंह अपने तालाब की लम्बाई-चैघई और गहराई बढ़ाने का मन भी बना चुके हैं, जिससे अपनी चैदह एकड़ खेती को तीन पानी देने के काबिल हो सकें। शिवराज सिंह पूरे भरोसे से कहते हैं कि ढइझ‘जल्दी ही तालाब को और बड़ा करूँगा, ताकि सभी खेतों को पानी मिल सके।’ढध्इझ महोबा जनपद की तहसील चरखारी के गाँव काकून के कई किसानों ने भयंकर सूखे में भी बोई है, फसल। वर्ष 2013-15 के बीच ‘अपना तालाब अभियान’ से प्रेरित गाँव काकून में लगभग 50 से ज्यादा किसानों ने तालाब बनाने का संकल्प लिया और बना डाले तालाब। पुराने और नए सभी तालाबों ने नई इबारत लिखनी शुरू कर दी है। तालाबों ने सूखी और बंजर जमीनों की प्यास बुझाना शुरू किया है। तालाबों में पानी नहीं भी है तो तालाब के नजदीक के कुओं में 15-20 फीट पर पानी है। तालाब भले ही सूख गये हों, पर धरती की कोख में पानी दे गये हैं।  
काकून के मैयादीन के पास पट्टे की बंजर-ऊसर दो बीघा जमीन है। जमीन बंजर तो थी ही साथ ही सिंचाई का कोई साधन भी नहीं था। मैयादीन सरकार से मिली जमीन का उपयोग खेती के लिये करने में असमर्थ थे। पानी नहीं तो खेती कैसे होगी। मैयादीन ने भी अपने खेत में एक छोटा तालाब खुदवाने का निर्णय लिया आज उनके तालाब में पानी है जो उनकी उम्मीदों की फसल को सूखे में भी पानी दे रहा है। सूखे में भी फसल की रखवाली के लिये खेत पर डटे हुए हैं। यकीनन ऐसे प्रयासों में ही बुन्देलखण्ड के सूखे के समाधान के बीज छिपे हुए हैं।
बुन्देलखण्ड के सूखे से निपटने के लिये हम सबको अपने हुनर, अपने संसाधन और अपने सम्बन्धों की पूँजी का सदुपयोग कर जरूरत की छोटी-छोटी योजनाओं पर काम करना होगा। जरूरत है कि ग्राम्य-जीवन में रचे-बसे खेती-किसानी, पेघ् और पानी की विधाओं में अनुभवी, पारंगत, कुशल किसान शिल्पियों पर भरोसा करें। नहीं तो रोना ही पड़ेगा। बेहतर तो है कि सिंचाई, जल संजोने व खेती के टिकाऊ तौर-तरीकों के अनुभवों के मुताबिक निदान की दिशा में छोटे-छोटे काम शुरू करें। और यह राज-समाज की साझी पहल से ही सम्भव है। 
बुन्देलखण्ड में तालाबों की संस्कृति पिछले एक-डेघ् हजार साल से खूब समृद्ध रही है। बुन्देलखण्ड के लगभग हरेक गाँव में यहाँ-वहाँ तालाब देखने को मिल जाएँगे। बुन्देलखण्ड की धरती और माटी के साथ ही पठारी धरातल में सबसे उपयुक्त जल संजोने का तरीका तालाब ही है। चंदेल राजाओं ने लगभग एक हजार साल पहले समय-सिद्ध तालाब और बावघ्यिों की खुशबू और खूबसूरती को पहचान लिया था और उनको चिरस्थाई बनाने के लिये हर सम्भव कोशिश की थी। पर हमने बेकदरी के हजार साल बिता दिए हैं। हम भूल गये, अब परेशान हैं, जमीन छोड़ रहे हैं, पलायन को विवश हैं। ऐसे में आशुतोष, शिवराज सिंह, मैयादीन जैसे किसानों से मिलने की जरूरत है, जो बेबसी का टीका पोंछकर सुकाल का टीका लगा रहे हैं। इन्होंने बड़े जतन से अपने-अपने तालाबों में पानी टिकाया, अब पानी उन्हें टिकाए हुए है। 
अपना तालाब अभियान क्या है?ढध्इझढइतझ
यह जानना जरूरी है कि अपना तालाब अभियान क्या है? कहानी की शुरुआत की तिथि का ठीक- ठीक अंदाज तो नहीं है। साल 2013, महीना मार्च। हमेशा की तरह बुन्देलखण्ड के अकाल की खबरें इस बार भी सुर्खियों में था। कुछ मित्रों के साथ अपन अनुपम मिश्र जी से मिलने उनके दफ्तर पहुँचे। औपचारिक कुशल-क्षेम के बाद उन्होंने पूछा- कैसे आए। जो चिन्ता थी बताया। धीरज बंधाते हुए उन्होंने कहा कि इसमें चिन्ता की कोई बात नहीं। सब ठीक हो जाएगा। पानी का इतना बड़ा अकाल नहीं, बुद्धि का अकाल है। अपन को बुद्धी ठीक करने के लिये कुछ करना चाहिए। कुछ धूल हम सब के दिमाग पड़ गई है जिसे झाड़ने की जरूरत है। सबसे पहले जहाँ-जहाँ अच्छे काम हुए है वहाँ के मित्रों की एक छोटी बैठक बुलाओ। इसमें बुन्देलखण्ड के मित्र भी आएँगे। जाओ तैयारी करो। तारिख तय कर के बताना। अपन अब बैठक में मिलेंगे।
सभी बैठक की तैयारी में जुट गए। ठीक आठ दिन बाद की तारीख पक्की हुई। सब कुछ अनौपचारिक तरीके से हो रहा था। मैं केसर (इंडिया वाटर पोर्टल) ने साथियों को खबर करने की जिम्मेवारी ली। मित्रों के आने-जाने और खाने-पीने का इन्तजाम अजय भाई (पैरवी संस्था के निदेशक) ने की। बैठक की जगह अनुपम जी के ऑफिस का कमरा तय हुआ।
देवास से दिलीप सिंह पंवार और रघुनाथ सिंह तोमर जी, बुन्देलखण्ड के बांदा से सुरेश रैकवार जी, छतरपुर से संजय भाई, लापोडघ्यिा राजस्थान से लक्ष्मण सिंह के अलावा दिल्ली से अजय झा, प्रभात भाई और अनुपम जी बैठक में शामिल हुए। बाहर से आये सभी लोगों ने अपने-अपने इलाके के काम की जानकारी दी। बैठक के अंत में तय हुआ कि अगले मानसून के पहले यही टीम बुन्देलखण्ड के दोनों हिस्सों में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में किसानों के साथ बात-चीत करेगी इस बार की बैठक थोड़ी बड़ी थी लिहाजा तैयारी में कुछ ज्यादा वक्त लगा। सात अप्रैल 2013 को अतर्रा, बांदा और आठ अप्रैल को छतरपुर में बैठक निर्धारित की गई। करीब दिन भर की बैठक के बाद हम लोगों ने चरखारी, महोबा में रात बिताना तय किया।
8 अप्रैल 2013 को बुन्देलखण्ड के तालाबों के सम्बन्ध में एक बैठक का आयोजन बांदा जिले के अतर्रा ग्रामीण इलाके में किया गया। आयोजनकर्ता संस्था के प्रमुख सुरेश रैकवार द्वारा पूर्व वर्षों में अस्तित्व खोते जा रहे, कुछ एक तालाबों के पुनर्जीवन का कार्य जन सहयोग से कराये जाने का अनुभव था। इस कार्यक्रम में पैरवी दिल्ली प्रायोजक रही। कार्यक्रम में क्षेत्रीय किसानों, शिक्षकों, पत्रकारों, संस्थाओं के प्रतिनिधियों की उपस्थिति रही। चर्चा के दौरान पुराने तालाबों को संवारने की जरूरत महसूस की गयी। जनपद के पल्हरी गाँव में तैनात शिक्षा मित्र ओमप्रकाश भारतीय द्वारा अपने सजातीय परिवारों के कब्जे से एक बड़े तालाब को मुक्त कराने का साहस भी सुना। पर इन सबसे किसानों की बदहाली का रास्ता मिल सकता हो, या उनकी खुशहाली बढ़ सकती हो, नजर नहीं आयी। एक और प्रयोग पर चर्चा आई। किसानों के खेत पर उनके अपने तालाबों का निर्माण, जिससे वह सिंचाई कर फसलों का उत्पादन बढ़ा सकें। इस बात को रखने वाले और समर्थन करने वालों की उस बैठक में संख्या भले ही कम रही हो, पर बात पते की ही नहीं फायदे की भी थी। पुष्पेन्द्र भाई द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव पर उदाहरण सहित पुष्टि, केसर ने प्रत्यक्ष प्रमाण के रूप में रखा, मीटिंग में देवास क्षेत्र के जल संकट से निजात पा चुके, तालाबों से फायदा पाने वाले किसान भी मौजूद थे। उनकी मुँह जुबानी सुनकर एक बात सभी को समझ में आने लगी थी। बुन्देलखण्ड मे गहराती जल समस्या का एक मात्र विकल्प किसानों के अपने तालाब हो सकते हैं। पर यह काम कब और कहाँ से प्रारम्भ हो, संसाधन और वातावरण के अभाव में काम कठिन था। इसी संदर्भ में 9 अप्रैल को एक बैठक का आयोजन बुन्देलखण्ड के म.प्र. में छतरपुर में आयोजित थी। यात्रा के दौरान तय हुआ कि पानी पुनरूत्थान पहल के चरखारी में किये गये प्रयासों को देखते हुए चलें। सम्भव हो तो इस दिशा में सहयोगी बने जिलाधिकारी अनुज कुमार झा से भी मुलाकात करें।
जिलाधिकारी अनुज कुमार झा के आवास पर देर रात पहुँचकर चर्चा के दौरान हमने देवास में किये गये पानी के संकट से निजात पाने की घटना का जिक्र किया। और उसे देखने की जरूरत। तय यही हुआ कि जिले से अधिकारियों, किसानों, स्वैच्छिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों की एक टीम जाकर देखेगी। इसके लिये जाने वाले सदस्यों की सूची का दायित्व पुष्पेन्द्र भाई को दिया गया। इस बैठक में गाँधी शांति प्रतिष्ठान के कार्यकर्ता श्री प्रभात, पैरवी दिल्ली से अजय कुमार भी शामिल रहे।
देवास भ्रमण के लिये निर्धारित सूची के क्रम में जिलाधिकारी महोबा द्वारा 15 अप्रैल 2013 को एक पत्र जारी किया गया। जनपद के उपकृषि निदेशक श्री जी.सी.कटियार के नेतृत्व में उपसभ्भागीय कृषि प्रसार अधिकारी श्री वी.के.सचान, सहायक अभियन्ता लघु सिंचाई डा. अखिलेश कुमार, खण्ड विकास अधिकारी पनवाड़ी श्री दीनदयाल, उपनिदेशक भूमि संरक्षण एवं जल संसाधन महोबा श्री आर के.उत्तम, क्षेत्रीय वनाधिकारी पनवाड़ी श्री हरी सिंह, ए.डी.एम.यू. अधिकारी जायका वन प्रभाग महोबा श्री रामेश्वर तिवारी, किसान भारत सिंह यादव, किसान मिश्रा, स्वैच्छिक संगठनों में डा. अरविन्द खरे (ग्रामोन्नति), श्री पंकज बागवान और पुष्पेन्द्र भाई शामिल हुए। देवास भ्रमण के दौरान गाँव में तालाबों के श्रृंखलावद्ध निर्माण और गाँव-गाँव में चल रहे तालाब निर्माण की स्वसंचालित पहल देखकर उम्मीद जगी। इस दौरान उन ग्राम पंचायतों को भी देखा जहाँ पर प्रत्येक किसान परिवार के पास अपना तालाब था। 
9 मई 2013 को देवास मप्र के तालाबों का अवलोकन कर वापस आई टीम के सदस्यों के अनुभवों को जानने समझने और उन अनुभवों का प्रयोग महोबा जिले में दोहराने के उद्देश्य से एक बैठक का आयोजन विकास भवन सभागार में जिलाधिकारी महोबा की अध्यक्षता में किया गया। उसके बाद से हम लोग गाँवों में लग गए किसानों के साथ संवाद में। और लोगों से हम लोग यही कहते रहते थे कि हर किसान को अपने पानी का प्रबंधन करना है, और उसके लिये अपना-अपना तालाब बनाना है, फिर हुआ यह कि धीरे-धीरे यह अभियान ढइझ‘अपना तालाब अभियान’ढध्इझ बन गया. 
ढइझ‘अपना तालाब अभियान’ढध्इझ कोई योजना नहीं है, और न ही कोई एनजीओ, यह राज समाज की साझी पहल है। और हर वह व्यक्ति जो बुन्देलखण्ड के सूखे से जूझ रहा है, वह इस अभियान का साथी है। 
अपना तालाब अभियान क्या है?
यह जानना जरूरी है कि अपना तालाब अभियान क्या है? कहानी की शुरुआत की तिथि का ठीक- ठीक अंदाज तो नहीं है। साल 2013, महीना मार्च। हमेशा की तरह बुन्देलखण्ड के अकाल की खबरें इस बार भी सुर्खियों में था। कुछ मित्रों के साथ अपन अनुपम मिश्र जी से मिलने उनके दफ्तर पहुँचे। औपचारिक कुशल-क्षेम के बाद उन्होंने पूछा- कैसे आए। जो चिन्ता थी बताया। धीरज बंधाते हुए उन्होंने कहा कि इसमें चिन्ता की कोई बात नहीं। सब ठीक हो जाएगा। पानी का इतना बड़ा अकाल नहीं, बुद्धि का अकाल है। अपन को बुद्धी ठीक करने के लिये कुछ करना चाहिए। कुछ धूल हम सब के दिमाग पड़ गई है जिसे झाड़ने की जरूरत है। सबसे पहले जहाँ-जहाँ अच्छे काम हुए है वहाँ के मित्रों की एक छोटी बैठक बुलाओ। इसमें बुन्देलखण्ड के मित्र भी आएँगे। जाओ तैयारी करो। तारिख तय कर के बताना। अपन अब बैठक में मिलेंगे।
सभी बैठक की तैयारी में जुट गए। ठीक आठ दिन बाद की तारीख पक्की हुई। सब कुछ अनौपचारिक तरीके से हो रहा था। मैं केसर (इंडिया वाटर पोर्टल) ने साथियों को खबर करने की जिम्मेवारी ली। मित्रों के आने-जाने और खाने-पीने का इन्तजाम अजय भाई (पैरवी संस्था के निदेशक) ने की। बैठक की जगह अनुपम जी के ऑफिस का कमरा तय हुआ।
देवास से दिलीप सिंह पंवार और रघुनाथ सिंह तोमर जी, बुन्देलखण्ड के बांदा से सुरेश रैकवार जी, छतरपुर से संजय भाई, लापोडघ्यिा राजस्थान से लक्ष्मण सिंह के अलावा दिल्ली से अजय झा, प्रभात भाई और अनुपम जी बैठक में शामिल हुए। बाहर से आये सभी लोगों ने अपने-अपने इलाके के काम की जानकारी दी। बैठक के अंत में तय हुआ कि अगले मानसून के पहले यही टीम बुन्देलखण्ड के दोनों हिस्सों में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में किसानों के साथ बात-चीत करेगी।
इस बार की बैठक थोड़ी बड़ी थी लिहाजा तैयारी में कुछ ज्यादा वक्त लगा। सात अप्रैल 2013 को अतर्रा, बांदा और आठ अप्रैल को छतरपुर में बैठक निर्धारित की गई। करीब दिन भर की बैठक के बाद हम लोगों ने चरखारी, महोबा में रात बिताना तय किया।
8 अप्रैल 2013 को बुन्देलखण्ड के तालाबों के सम्बन्ध में एक बैठक का आयोजन बांदा जिले के अतर्रा ग्रामीण इलाके में किया गया। आयोजनकर्ता संस्था के प्रमुख सुरेश रैकवार द्वारा पूर्व वर्षों में अस्तित्व खोते जा रहे, कुछ एक तालाबों के पुनर्जीवन का कार्य जन सहयोग से कराये जाने का अनुभव था। इस कार्यक्रम में पैरवी दिल्ली प्रायोजक रही। कार्यक्रम में क्षेत्रीय किसानों, शिक्षकों, पत्रकारों, संस्थाओं के प्रतिनिधियों की उपस्थिति रही। चर्चा के दौरान पुराने तालाबों को संवारने की जरूरत महसूस की गयी। जनपद के पल्हरी गाँव में तैनात शिक्षा मित्र ओमप्रकाश भारतीय द्वारा अपने सजातीय परिवारों के कब्जे से एक बड़े तालाब को मुक्त कराने का साहस भी सुना। पर इन सबसे किसानों की बदहाली का रास्ता मिल सकता हो, या उनकी खुशहाली बढ़ सकती हो, नजर नहीं आयी। एक और प्रयोग पर चर्चा आई। किसानों के खेत पर उनके अपने तालाबों का निर्माण, जिससे वह सिंचाई कर फसलों का उत्पादन बढ़ा सकें। इस बात को रखने वाले और समर्थन करने वालों की उस बैठक में संख्या भले ही कम रही हो, पर बात पते की ही नहीं फायदे की भी थी। पुष्पेन्द्र भाई द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव पर उदाहरण सहित पुष्टि, केसर ने प्रत्यक्ष प्रमाण के रूप में रखा, मीटिंग में देवास क्षेत्र के जल संकट से निजात पा चुके, तालाबों से फायदा पाने वाले किसान भी मौजूद थे। उनकी मुँह जुबानी सुनकर एक बात सभी को समझ में आने लगी थी। बुन्देलखण्ड मे गहराती जल समस्या का एक मात्र विकल्प किसानों के अपने तालाब हो सकते हैं। पर यह काम कब और कहाँ से प्रारम्भ हो, संसाधन और वातावरण के अभाव में काम कठिन था। इसी संदर्भ में 9 अप्रैल को एक बैठक का आयोजन बुन्देलखण्ड के म.प्र. में छतरपुर में आयोजित थी। यात्रा के दौरान तय हुआ कि पानी पुनरूत्थान पहल के चरखारी में किये गये प्रयासों को देखते हुए चलें। सम्भव हो तो इस दिशा में सहयोगी बने जिलाधिकारी अनुज कुमार झा से भी मुलाकात करें।
जिलाधिकारी अनुज कुमार झा के आवास पर देर रात पहुँचकर चर्चा के दौरान हमने देवास में किये गये पानी के संकट से निजात पाने की घटना का जिक्र किया। और उसे देखने की जरूरत। तय यही हुआ कि जिले से अधिकारियों, किसानों, स्वैच्छिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों की एक टीम जाकर देखेगी। इसके लिये जाने वाले सदस्यों की सूची का दायित्व पुष्पेन्द्र भाई को दिया गया। इस बैठक में गाँधी शांति प्रतिष्ठान के कार्यकर्ता श्री प्रभात, पैरवी दिल्ली से अजय कुमार भी शामिल रहे।
देवास भ्रमण के लिये निर्धारित सूची के क्रम में जिलाधिकारी महोबा द्वारा 15 अप्रैल 2013 को एक पत्र जारी किया गया। जनपद के उपकृषि निदेशक श्री जी.सी.कटियार के नेतृत्व में उपसभ्भागीय कृषि प्रसार अधिकारी श्री वी.के.सचान, सहायक अभियन्ता लघु सिंचाई डा. अखिलेश कुमार, खण्ड विकास अधिकारी पनवाड़ी श्री दीनदयाल, उपनिदेशक भूमि संरक्षण एवं जल संसाधन महोबा श्री आर के.उत्तम, क्षेत्रीय वनाधिकारी पनवाड़ी श्री हरी सिंह, ए.डी.एम.यू. अधिकारी जायका वन प्रभाग महोबा श्री रामेश्वर तिवारी, किसान भारत सिंह यादव, किसान मिश्रा, स्वैच्छिक संगठनों में डा. अरविन्द खरे (ग्रामोन्नति), श्री पंकज बागवान और पुष्पेन्द्र भाई शामिल हुए।
देवास भ्रमण के दौरान गाँव में तालाबों के श्रृंखलावद्ध निर्माण और गाँव-गाँव में चल रहे तालाब निर्माण की स्वसंचालित पहल देखकर उम्मीद जगी। इस दौरान उन ग्राम पंचायतों को भी देखा जहाँ पर प्रत्येक किसान परिवार के पास अपना तालाब था। 
9 मई 2013 को देवास मप्र के तालाबों का अवलोकन कर वापस आई टीम के सदस्यों के अनुभवों को जानने समझने और उन अनुभवों का प्रयोग महोबा जिले में दोहराने के उद्देश्य से एक बैठक का आयोजन विकास भवन सभागार में जिलाधिकारी महोबा की अध्यक्षता में किया गया। उसके बाद से हम लोग गाँवों में लग गए किसानों के साथ संवाद में। और लोगों से हम लोग यही कहते रहते थे कि हर किसान को अपने पानी का प्रबंधन करना है, और उसके लिये अपना-अपना तालाब बनाना है, फिर हुआ यह कि धीरे-धीरे यह अभियान ढइझ‘अपना तालाब अभियान’ढध्इझ बन गया. 
ढइझ‘अपना तालाब अभियान’ढध्इझ कोई योजना नहीं है, और न ही कोई एनजीओ, यह राज समाज की साझी पहल है। और हर वह व्यक्ति जो बुन्देलखण्ड के सूखे से जूझ रहा है, वह इस अभियान का साथी है। 
ढइझसहयोग -ढध्इझ  अनिल सिंदूर, रवि प्रकाश
जिन किसानों की कहानी कही गई है, उनके सम्पर्क पते  -  ढध्इझ
1. सम्पर्क - आशुतोष तिवारी, ग्रामरू जिगनौघ, तहसीलरू मौदहा, हमीरपुर, उत्तरप्रदेश, फोन - 9452223536 ढइतझ  
2. सम्पकर्रू शिवराज सिंह, ग्रामरू बरबई, विकासखंड दृ कबरई, महोबा, उत्तरप्रदेश, फोन - 08400436748ढइतझ
3. सम्पकर्रू मैयादीन, ग्रामरू काकून, विकासखंडरू चरखारी, महोबा, उत्तरप्रदेश, फोन -(वाया दशाराम) 09695983151

Tuesday, January 5, 2016

प्राकृतिक खेती एवं गौआधारित अर्थ व्यवस्था - उन्नत भारत अभियान

दिनांक 12, 13 जनवरी, 2015 को गन्ना शोध परिषद् लखनऊ में दो दिवसीय प्राकृतिक खेती एवं गौआधारित अर्थ व्यवस्था पर कार्य शाला, उन्नत भारत अभियान के अंतर्गत, लोकभारती के संयोजन में संपन्न हुई जिसमें अठारह प्रदेशों के तीन सौ किसान वैज्ञानिक एवं कृषि वैज्ञानिक सम्मिलित हुए| कार्यक्रम में एन०एस०राठौर, उप महानिदेशक उच्च शिक्षा, भारत सरकार, प्रो० वी०के०विजय, संयोजक उन्नत भारत अभियान, आई०आई०टी०, दिल्ली, प्रो० राजेन्द्र प्रसाद, परामर्शदाता, उन्नत भारत अभियान, गोरक्ष पीठाधीश्वर महंथ योगी आदित्य नाथ, शाहजहांपुर की सांसद श्रीमती कृष्णा राज, केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री, भारत सरकार श्री सुधीर कुमार बालियान, कनेरी मठ महाराष्ट्र के प्रख्यात संत सिद्धकाणी महाराज, इस अभियान के संरक्षक राष्ट्रीय संगठक श्री हृदय नाथ सिंह, श्याम विहारी गुप्त, गोपाल उपाध्याय तथा लोकभारती के राष्ट्रीय संगठन सचिव श्री ब्रजेन्द्र पाल सिंह, वनवासी कल्याण आश्रम के श्री कृपा शंकर सिंह सहित दो दर्जन से अधिक विभिन्न संवंधित विषयों के विशेषज्ञ सहभागी रहे|
इस अवसर पर पहले चरण में सम्पूर्ण देश में प्राकृतिक खेती के एक सौ मंडल केंद्र स्थापित करने का भी निश्चय हुआ, जिसके सञ्चालन के लिए श्री एन०एस०राठौर, उप महानिदेशक उच्च शिक्षा, भारत सरकार की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई, जिसके सचिव  महदेव वी० चेट्टी, ऐ०डी०जी०, एच० आर०, उपाध्यक्ष ब्रजेन्द्र पाल सिंह, संगठन सचिव लोकभारती तथा सदस्य प्रो० वी०के०विजय, प्रो० राजेन्द्र प्रसाद, श्याम विहारी गुप्त, गोपाल उपाध्याय, सुषमा सिंह एवं संरक्षक श्री हृदय नाथ सिंह, श्री कृपा शंकर सिंह, संत सिद्धकाणी महाराज सुनिश्चित किये गये| 100 मंडलों के सुचारू संचालन एवं प्रशिक्षण के लिए 29 से 31 जनवरी, 2015 को कनेरी मठ में  प्रशिक्षण शिविर का आयोजन सुनिश्चित है|

पर्यावरण एवं गोमती मित्र मंडल राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं सम्मलेन -

दिनांक 8 दिसम्बर 2015 को लखनऊ विश्व विद्यालय के मालवीय सभागार में  माननीय राज्यपाल उत्तर प्रदेश की उपस्थिति में पर्यावरण एवं गोमती मित्र मंडल राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं सम्मलेन संम्पन्न हुआ....

इस अवसर पर गोमती संरक्षण के लिए कार्यरत कार्यकर्ताओं का सम्मान माननीय राज्यपाल द्वारा किया गया ..
मंच पर जल संचयन के लिए कार्यरत तथा गोमती संरक्षण अभियान से प्रारम्भ से जुड़े श्री महेंद्र मोदी, ऐडीजी एसआईटी उत्तर प्रदेश तथा महंथ रामसेवक दास (गोमती बाबा) को सम्मानित करते हुए माननीय रामनाईक जी राज्यपाल उत्तर प्रदेश.......

मंच पर ऊपर बायें से - सर्व श्री अनिल सिंह, रामनारायण साहू, लखनऊ के महापौर डा० दिनेश शर्मा, माननीय रामनाईक जी राज्यपाल उत्तर प्रदेश, प्रो० विनय पाठक, कुलपति प्राविधिक विश्व विद्यालय, लखनऊ ...

नीचे बायें से- सम्मानित गोमती मित्र सर्व श्री बैद्य बाल कृष्ण शास्त्री, प्रेम शंकर शुक्ल, डा० नरेंद्र मेहरोत्रा, महंथ देव्या गिरि जी, महंथ रामसेवक दास, प्रो० एस०वी०निमसे, कुलपति लखनऊ विश्व विद्यालय, महेंद्र मोदी, एसआईटी उ०प्र०, रामशरण, पूर्व संपादक लोकसम्मान, कैप्टन सुभाष ओझा, संयोजक गोमती अलख यात्रा, चन्द्र भूषण तिवारी, संयोजक लक्ष वृक्ष आन्दोलन,  राधेकृष्ण दुबे, संयोजक देव वृक्ष अभियान, नैमिषारणय, महेंद्र प्रताप सिंह, संयोजक  तीर्थ संरक्षण, अजय प्रकाश, संयोजक हरियाली पखवारा... 

सम्मानित  सभी गोमती मित्र सदस्य गण -   
प्रतिभागी- गोमती मित्र एवं राष्ट्रीय सेवा योजना, लखनऊ के सदस्य

लोकसम्मान पत्रिका के युवा शक्ति विशेषांक का विमोचन
बाएं - डा०भारती पाण्डेय



Tuesday, December 29, 2015

परोपकारी युवक की कहानी - "दुख बांटना"

दोपहर, विद्यालय के विश्राम का समय। एक दुबला-पतला सुंदर-सा युवक विद्यालय के बाहर निकलकर खाना खाने के लिए अपने घर जा रहा था। रास्ते में उसने देखा, दो लड़के आपस में झगड़ रहे हैं। उनमें एक बलवान था और दूसरा कमजोर। बलवान लड़का कमजोर लड़के को पीट रहा था। उसके हाथ में लकड़ी थी।
रास्ते चलने वाले लड़के को जोश आ गया। वह तुरंत बलवान लड़के के पास चला गया। उसके भारी शरीर को देख लड़के का साहस उसे टोकने का न हुआ। कुछ क्षण सोचकर उसने बलवान लड़के से पूछा, ‘‘क्यों भाई, तुम इसको कितने बेंत लगाना चाहते हो?’’
किसी अपरिचित लड़के को बीच में पड़ते देख बलवान लड़के का क्रोध तेज हो गया। उसने कठोर दृष्टि से देखते हुए कहा, ‘‘क्यों, तुम्हें क्या मतलब?’’
‘‘मुझे इससे मतलब है’’ राह चलते लड़के ने कहा।
‘‘तुम क्या कर लोगे?’’ बलवान लड़के ने चेतावनी दी।
‘‘भाई, मैं तुमसे अधिक बलवान तो नहीं हूँ, जो इस कमजोर को बचाने के लिए तुमसे लड़ सकूँ। लेकिन इतना जरूर चाहता हूँ कि इसकी पिटाई में मैं भी भागीदार बन जाऊँ।’’ दर्शक लड़के ने कहा।
‘‘तुम्हारा मतलब क्या है?’’ पीटने वाला लड़का इस पहेली का अर्थ न समझ सका।
‘‘तुम इस कमजोर लड़के के शरीर पर कुल जितने भी बेंत मारना चाहते हो, उसके आधे मेरे पीठ पर लगा दो। इस तरह इसका आधा कष्ट मैं बाँट लूँगा।’’ दर्शक लड़के ने अपनी बात स्पष्ट करते हुए कहा।
बलवान लड़का आश्चर्य से देखता रहा और कुछ क्षण बाद उसने चुपचाप अपने हाथ की लड़की तोड़कर फेंक दी और मन में पश्चाताप करता अपने रास्ते चला गया। पिटने वाले लड़के की मुसीबत टल गई। वह बीच का लड़का जीवन भर इसी तरह सूझ-बूझ से कार्य करता रहा तथा बड़ा होकर अँगरेजी का प्रसिद्ध कवि लार्ड बायरन के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 

सामाजिक सेवा को समर्पित राष्ट्रीय संगठन- लोक भारती के कार्य की दिशायें - .अशोक सिंह

लोक भारती सामाजिक सहयोग से अनेक क्षेत्रों में प्रभावी कार्य कर रही है, 
जिनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-
1. गौ आधारित खेती - सामान्यतः इस पद्धति को शून्य लागत प्राकृतिक खेती के नाम से जानते हैं। पिछले दो वर्ष से कई संस्थाओं के सहयोग से 13 स्थानों पर प्रशिक्षण वर्गों के आयोजन किए, जिनमें उŸार प्रदेश, उत्तराखण्ड, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, मध्यप्रदेश, बिहार सहित कई अन्य प्रान्तों के लगभग 6000 प्रयोगधर्मी किसानों, कृषि वैज्ञानिकों, सामाजिक कार्यकर्र्ताओं, गन्ना उद्योगों एवं कृषि विभाग के अधिकारियों ने भाग लिया।
बजाज ग्रुप (गन्ना मिल) के बाद अब उत्तर प्रदेश गन्ना शोध संस्थान, शाहजहाँपुर द्वारा इस पद्धति के पांँच माॅडल केन्द्रों पर अध्ययन कार्य प्रारम्भ हुआ है, वहीं   कृषि विभाग, उ॰प्र॰ से सम्बन्धित ‘आत्मा’ द्वारा प्रदेश के सभी विकास खण्ड से चयनित 1000 किसानों के प्रशिक्षण की तैयारी चल रही है। लोकभारती की मुख्य भूमिका (1) प्रशिक्षण (2) अनुवर्ती कार्य (3) समन्वय (4) माॅडल केन्द्र व (5) प्रशिक्षक तैयार करना है।
2. ‘सरिता समग्र’ अभियान - लोक भारती द्वारा 22, 23 जनवरी, 2011 को लखनऊ में माँ गंगा समग्र चिन्तन गोष्ठी का आयोजन हुआ, जिसमें एक दिशा व दृष्टि बनी कि - ‘‘गंगा मांँ को अपने पावन स्वरूप में अविरल, निर्मल बनाये रखने के लिए उससे मिलने वाली सभी नदियों पर कार्य करना होगा।’’  इस गोष्ठी में एक दर्जन नदियों, जल व पर्यावरण पर कार्य करने वाले 250 प्रतिनिधियों के साथं गंगा व अन्य नदियों सम्बन्धी योजना बनी कि- (1) विभिन्न नदियों, जल व पर्यावरण पर कार्य करने वाली संस्थाओं, व्यक्तियों एवं वैज्ञानिकों के मध्य समन्वय। (2) गंगा सम्बन्धी कार्य में सहभागिता (3) गोमती नदी पर स्वयं कार्य करना।
3. गोमती संरक्षण अभियान - सर्वप्रथम लखनऊ में गोमती तटों पर स्वच्छता कार्यक्रम, वृक्षारोपण एवं जागरुकता कार्यक्रम प्रारम्भ हुए। तत्पश्चात् 28 मार्च से 4 अपै्रल, 2011 को गोमती उद्गम माधौटाण्डा, पीलीभीत से गोमती-गंगा संगम स्थल, कैथी घाट (मारकण्डे आश्रम) वाराणसी तक 7 दिवसीय गोमती यात्रा का आयोजन, 33 स्थानों पर गोमती मित्र मण्डलों का गठन, नैमिषारण्य के चैरासी कोसी परिक्रमा पथ पर एक माह की यात्रा, 88 हजार ऋषियों की स्मृति में व्यापक वृक्षारोपण तथा 2020 तक गोमती को प्रदूषण मुक्त, सुजला करने का संकल्प महत्वपूर्ण कार्य हैं।
4. वृक्षारोपण व हरियाली पखवारा -गोमती संरक्षण अभियान के क्रम में नैमिषारण्य में सघन व व्यापक वृक्षारोपण अभियान के बाद धरती माँ के 33 प्रतिशत अपेक्षित वृक्षादन की दिशा में ‘हरियाली चादर विकास’ का कार्य प्रारम्भ हुआ। जिसके अन्र्तगत जुलाई माह के गुरुपूर्णिमा से हरियाली तीज तक 18 दिवसीय ‘हरियाली पखवारा’ में वृक्षारोपण का कार्य चल रहा है। इसमें पंचवटी, नक्षत्र वाटिका, हरिशंकरी (पीपल, बरगद, पाकड़ एक थाले में लगाना) वृक्ष धर्मशाला, वृक्ष भण्डारा एवं हरियाली चूनर आदि मुख्य कार्य हैं।
5. तीर्थ व घाट सुव्यवस्था - चन्द्रिकादेवी लखनऊ के पालीथीन मुक्त, हरियाली से युक्त तीर्थ के सफल अभियान के बाद, नैमिष तीर्थ सीतापुर, प्राकृतिक वन एवं जल स्रोत स्थल धोबिया घाट, हरदोई, वृन्दावन, मथुरा में हरित पट्टी हेतु वृक्षारोपण तथा सौलानी देवी प्राकृति जल स्रोत, लखनऊ पर सघन वृक्षारोपण महत्वपूर्ण कार्य हैं। यह कार्य अन्य तीर्थों पर भी प्रारम्भ करने की योजना है।
6. मेरा गाँव, मेरा तीर्थ - वर्ष 2011 स्वामी विवेकानन्द की सार्धशती से समग्र ग्राम विकास र्में नई दिशा के दो भाग कार्ययोजना में हैं- (1) नगरों में निवास कर रहे बन्धुओं द्वारा अपने गाँव के विकास के लिए कार्य करना। (2) नगरों में हम जहांँ निवास कर रहे हैं, उस कालोनी में ग्राम संस्कृति के विकास सम्बन्धी आयोजन, जिसका अर्थ है - परिवारिक भाव, एक दूसरे को जानना, सुख-दुख में सहभागी होना, सहयोग एवं सहकार।
7. आर्दश गाँव सहभागिता - जहाँ हमारा सम्पर्क है, सामाजिक सहकार के कार्य करना, जैसे गौ आधारित खेती, जल संरक्षण, वृक्षारोपण, विद्यालय, सहकार, व्यक्तित्व विकास, सम्मेलन एवं स्वच्छता आदि।
8. स्वच्छता अभियान, 9. युवा कौशल विकास, 10.रसोई वाटिका, 11. लोक सम्मान, 12. ई-समाचार बुलेटिन, 13.औषधीय कृषि एवं 14. पर्यावरणीय परिसर विकास आदि। 

आसन, प्राणायाम एवं ध्यान - डाॅ॰ अंजलि सिंह

जीवन लीला सांस लेने की क्रिया से प्रारम्भ होकर सांस छोड़ने के बीच का खेल है। यह पढ़ते हुए जरा अपना ध्यान अपनी सांसों पर ले जाईये, क्या इससे पहले कभी आपनेे अपनी सांसों पर ध्यान दिया है? यदि  दिया होगा तो आप जानते होंगे कि किसी भी कृत्य को करते समय यदि सभी ज्ञानेन्द्रियों को एकाग्र कर दिया जाये तो वही कार्य ध्यान के समान है। यदि सांस लेने के लिए, खाना खाने या सोने जितना भी प्रयास लगता तो उसे भी मनुष्य कर्म के समान समझते। अब चूँकि सांस लेने के लिए कोई प्रयास तो करना नहीं होता तो अधिकतर मनुष्य अपनी सांसों के प्रति उदासीन रहते हैं।  अर्थात श्वांस के महत्व को समझते हुए ही कोई भी व्यक्ति आसन, प्राणायाम एवं ध्यान का सर्वोत्तम लाभ प्राप्त कर सकता है।
महर्षि पतंजलि ने कहा है ‘स्थिरं सुखम आसनं’  योग मुद्रा स्थापित करने में जल्दबाजी से योग का फल घटा देता है। व्यक्ति को स्थिर मन के साथ उतना ही आसन मेें जाना चाहिए जितना करने से शरीर में तनाव न पैदा हो।
योग मुद्रा में सही प्रकार से सांस लेने का महत्व: योग मुद्रा में बैठते समय, शरीर को आसन की दिशा में ले जाते समय सांस अन्दर लेते है, कुछ क्षण आसन में रहते हुए तीन-चार गहरी सांस लेते है, फिर आसन से बाहर आते हुए धीरे-धीरे सांस छोड़ते है। प्रत्येक अन्दर आती सांस तथा बाहर जाती पर अपना ध्यान रखते है, ऐसा करने से आसन के अधिक से अधिक लाभ पाए जा सकते है।
योग मुद्रा बनाते समय: योग मुद्रा बनाते समय सही और संतुलित क्रियाएँ करंे। यदि मुद्रा का आरम्भ सही होगा तभी उसका वांछित परिणाम मिल सकता है। मुद्रा बनाते समय पूर्ण जागरुकता रखें शरीर मोड़ते समय जल्दबाजी करने से नसों में खिंचाव हो सकता है।
योग मुद्रा को स्थापित रखना: पतंजलि योगसूत्र के अनुसार, योग मुद्रा बनाने का प्रयास करने के बाद, छोड़ दो व विश्राम करो। सौ प्रतिशत सही योग मुद्रा बनाने के लिए संघर्ष नहीं करना चाहिए, अपितु सामथ्र्यानुसार मुद्रा बनाते-बनाते सही मुद्रा बनने लगती है। मुद्रा स्थापित करने के साथ ही सांसों के माध्यम से विश्राम करने से योग क्रिया का सर्वाधिक लाभ मिलता है।
योग मुद्रा से बाहर आना: मुद्रा बनाना जितना महत्वपूर्ण होता है मुद्रा से बाहर आना भी उतना ही महत्वपूर्ण होता है। प्रत्येक विधि के साथ शारीरिक संतुलन व सांसों का समन्वय रखें एवं धीरे-धीरे शरीर को विश्राम में लायें। मुद्रा स्थापित करते समय जो क्रम लेना है उसी अनुसार मुद्रा से बाहर आते है। जिस प्रकार योग प्रारम्भ करने से पहले शरीर को थोड़ा गरम (वार्मअप) किया जाता है उसी प्रकार योग सम्पन्न करने के बाद शवासन में लेट जाऐं अथवा योग निद्रा करें।
योग निद्रा: योग निद्रा, योग क्रिया के उपरान्त विश्राम की क्रिया है। इस मुद्रा हेतु समतल स्थान पर शवासन में लेट कर शरीर के प्रत्येक अंग पर अपना ध्यान ले जाया जाता है। ऐसा करने से योग क्रिया का प्रभाव शरीर में पूरी तरह से समाहित हो जाता है।
योग करने के लिए ये सबसे महत्वपूर्ण बिन्दु है कि जब एक बार आप आरामदायक योगाभ्यास करने लगेंगे तब धीरे-धीरे योग मुद्राओं में सधार आने लगेगा।